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कविता

काव्य-शास्त्री

वीरेन डंगवाल


चुमे फटे ओंठ सन गए रस से
चैन आन पड़ा
संग नशा भी आया
ऊपर से छटा अनुप्रास की !
वाह-वाह
बार-बार होवे
इस विरोधाभस की पुनरुक्ति
होती रहे

 


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हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ