चुमे फटे ओंठ सन गए रस से चैन आन पड़ा संग नशा भी आया ऊपर से छटा अनुप्रास की ! वाह-वाह बार-बार होवे इस विरोधाभस की पुनरुक्ति होती रहे
हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ